"वृष्णि संघ" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
 
(7 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 26 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''वृष्णि और अन्धक संघ / Vrishni and Andhak'''
+
{{कृष्ण विषय सूची-2}}
 +
{{कृष्ण परिचय}}
 +
मधु राजा के सौ पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र एक यादवराज था। इसी के कुल में [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] पैदा हुए थे और इसी कारण 'वार्ष्णेय' कहलाए। इनका वंश 'वृष्णि वंशीय यादव' कहलाता था। ये लोग [[द्वारका]] में निवास करते थे। [[प्रभास|प्रभास क्षेत्र]] में यादवों के गृह कलह में यह वंश भी समाप्त हो गया। 'वृष्णि गणराज्य' [[शूरसेन जनपद|शूरसेन]] प्रदेश में स्थित था। वृष्णियों का तथा अंधकों का प्राचीन साहित्य में साथ-साथ उल्लेख है। '[[पाणिनि |पाणिनि]]'<ref>पाणिनि 4,1,114 तथा 6,2,34</ref> में वृष्णियों तथा अंधको का उल्लेख है। कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र'<ref>पृ. 12</ref> में वृष्णियों के संघ-राज्य का वर्णन है। '[[महाभारत]]' में अंधक वृष्णियों का श्रीकृष्ण के संबंध में वर्णन है-
 +
<blockquote>'यादवा: कुकुरा भोजा: सर्वे चान्धकवृष्णय:, त्वय्यासक्ता: महाबाहो लोकालोकेश्वराश्च ये।'<ref>महाभारत शांतिपर्व 81,29</ref></blockquote>
  
*मधु राजा के सौ पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र, एक यादवराज था। इसी के कुल में श्री[[कृष्ण]] पैदा हुए थे और इसी कारण 'वार्ष्णेय' कहलाए।  इनका वंश 'वृष्णि वंशीय यादव' कहलाता था।  ये लोग [[द्वारिका]] में निवास करते थे।  प्रभास क्षेत्र में यादवों के गृह कलह में यह वंश भी समाप्त हो गया।
+
इसी प्रसंग में श्रीकृष्ण को संघ मुख्य भी कहा गया है, जिससे सूचित होता है कि वृष्णि तथा अंधक गणजातियों के राज्य थे-
*वृष्णि-गणराज्य शूरसेन-प्रदेश में स्थित था। वृष्णियों का तथा अंधकों का प्राचीन साहित्य में साथ-साथ उल्लेख है। पाणिनि <ref> पाणिनि 4,1,114 तथा 6,2,34</ref>  में वृष्णियों तथा अंधको का उल्लेख हैं। 
+
<blockquote>'भेदाद् विनाश: संघानां संघमुख्योऽसि केशव'।<ref>महाभारत शांतिपर्व 81,25</ref></blockquote>
*[[चाणक्य|कौटिल्य]] के अर्थशास्त्र <ref> (पृ0 12)</ref>  में वृष्णियों के संघ-राज्य का वर्णन है। 
 
*[[महाभारत]] में अंधक वृष्णियों का कृष्ण के संबंध में वर्णन है। <ref>'यादवा: कुकुरा भोजा: सर्वे चान्धकवृष्णय:, त्वय्यासक्ता: महाबाहो लोकालोकेश्वराश्च ये।'महाभारत शांति0 81,29</ref>
 
*इसी प्रसंग में कृष्ण को संघ मुख्य भी कहा गया है जिससे सूचित होता है कि वृष्णि तथा अंधक गणजातियों के राज्य थे। <ref>'भेदाद् विनाश: संघानां संघमुख्योऽसि केशव' शाति0 81,25 </ref>
 
*वृष्णि राजज्ञागणस्य भुभरस्य । ' यह सिक्का वृष्णि-गणराज्य द्वारा प्रचलित किया गया था और इसकी तिथि प्रथम या द्वितीय शती ई॰पू॰ है। <ref>दे0 मजुमदार-कार्पोरेअ लाइफ इन ऐंशेंट इंडिया–पृ0 280</ref>
 
*अंधक एवं वृष्णि संघ सम्भवतः यदुवंशियों के राजा [[भीम सात्वत]] के पुत्रों के नाम पर बने थे । कृष्ण वृष्णि थे एवं [[उग्रसेन]] और [[कंस]] अंधक थे ।
 
*[[मथुरा]] में [[तीर्थंकर नेमिनाथ]] भी अंधक कहे गये हैं । कुछ ग्रंथों में कृष्ण को अंधक भी कहा गया है ।
 
*मथुरा [[अंधक संघ]] की राजधानी थी और द्वारिका वृष्णियों की ।
 
*श्री [[राम]] के पश्चात जब [[अयोध्या]] की गद्दी पर [[लव कुश|कुश]] थे और [[लव कुश|लव]] युवराज थे, तब [[मथुरा]] में भीम के पुत्र अंधक राज्य करते थे । उनके बाद अंधक वंशियों का मथुरा पर अधिकार रहा, जो [[उग्रसेन]] और उनके पुत्र [[कंस]] तक कायम रहा था । भीम के दूसरे पुत्र का नाम वृष्णि था । उनके वंश में उत्पन्न शूर ने शौरपुर (वर्तमान बटेश्वर) बसा कर अपना पृथक् राज्य स्थापित किया था । शूर के पुत्र [[वसुदेव]] हुए, जिनके पुत्र [[बलराम]] तथा श्री कृष्ण थे ।
 
*वैदिक साहित्य में उत्तरी [[पांचाल]] के पौरव-राजा [[दिवोदास]] और उनके वंशज [[सुदास]] की विजय-गाथाओं का उल्लेख मिलता है । सुदास ने [[हस्तिनापुर]] के पौरव राजा संवरण को उनके नौ साथी राजाओं की विशाल सेना सहित पराजित किया था । 10 राजाओं के उस भीषण संघर्ष को प्राचीन वाग्मय में "दशहराज्ञ युद्ध' कहा गया है । वीरवर सुदास से पराजित होने वाले उन नौ राजाओं में एक यादव नरेश भी था ।
 
{| id="textboxrt"
 
|'''महाभारत शांति पर्व अध्याय-82:'''
 
  
कृष्ण:-
+
*'वृष्णि राजज्ञागणस्य भुभरस्य।' यह सिक्का वृष्णि-गणराज्य द्वारा प्रचलित किया गया था और इसकी तिथि प्रथम या द्वितीय शती ई. पू. है।<ref>मजुमदार-कार्पोरेअ लाइफ़ इन ऐंशेंट इंडिया, पृ. 280</ref>
 +
*अंधक एवं वृष्णि संघ सम्भवतः यदुवंशियों के राजा भीम सात्वत के पुत्रों के नाम पर बने थे। कृष्ण वृष्णि थे एवं [[उग्रसेन]] और [[कंस]] अंधक थे। [[मथुरा]] में तीर्थंकर नेमिनाथ भी अंधक कहे गये हैं। कुछ ग्रंथों में कृष्ण को अंधक भी कहा गया है। मथुरा [[अंधक संघ]] की राजधानी थी और [[द्वारका]] वृष्णियों की।
 +
*श्रीराम के पश्चात् जब अयोध्या की गद्दी पर कुश थे और लव युवराज थे, तब मथुरा में भीम के पुत्र अंधक राज्य करते थे। उनके बाद अंधक वंशियों का मथुरा पर अधिकार रहा, जो राजा उग्रसेन और उनके पुत्र कंस तक क़ायम रहा। भीम के दूसरे पुत्र का नाम वृष्णि था। उनके वंश में उत्पन्न शूर ने शौरीपुर<ref>वर्तमान बटेश्वर, उत्तर प्रदेश</ref> बसाकर अपना पृथक् राज्य स्थापित किया था। शूर के पुत्र [[वसुदेव]] हुए, जिनके पुत्र [[बलराम]] तथा [[कृष्ण]] थे।
 +
*वैदिक साहित्य में उत्तरी पांचाल के पौरव [[दिवोदास|राजा दिवोदास]] और उनके वंशज सुदास की विजय-गाथाओं का उल्लेख मिलता है। सुदास ने [[हस्तिनापुर]] के पौरव राजा संवरण को उनके नौ साथी राजाओं की विशाल सेना सहित पराजित किया था। 10 राजाओं के उस भीषण संघर्ष को प्राचीन वाग्मय में "दशहराज्ञ युद्ध' कहा गया है। वीरवर सुदास से पराजित होने वाले उन नौ राजाओं में एक यादव नरेश भी था।
 +
*श्री कृष्णदत्त वाजपेयी का अनुमान है कि यादव राजा भीम सात्वत का पुत्र अंधक रहा होगा, जो सुदास के समय यादवों की मुख्य शाखा का अधिपती और शूरसेन जनपद के तत्कालीन गणराज्य का अध्यक्ष था। वह संभवत: अपने पिता भीम के समान वीर नहीं था। अंधक के वंश में कुकुर हुआ था। कुकुर की कई पीढ़ी बाद [[आहुक]] हुआ, जिसके दो पुत्र [[उग्रसेन]] और [[देवक]] हुए। उग्रसेन का पुत्र [[कंस]] था और देवक की पुत्री [[देवकी]] थी। उग्रसेन, देवक और कंस अपने पूर्वज अंधक और कुकुर के नाम पर अंधक वंशीय अथवा कुकुर वंशीय कहलाते थे। अंधक के भाई वृष्णि के दो पुत्र हुए, जिनके नाम देवमीढूष और युधाजित थे। देवमीढूष के पुत्र श्र्वफल्क और उनके पुत्र [[अक्रूर]] थे। वृष्णि के वंशज वाष्णि वंशीय अथवा वार्ष्णेय कहलाते थे।
 +
*अंधक और वृष्णि वंशिय द्वारा शासित शूरसेन प्रदेशांतर्गत [[मथुरा]] और शौरिपुर के दोनों राज्य 'गणराज्य' थे । उनका शासन वंश-परंपरागत न होकर समय-समय पर जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा होता था। वे प्रतिनिधि अपने-अपने गणों के मुखिया होते थे और राजा कहलाते थे।
 +
*[[महाभारत]] युद्ध से पूर्व उन दोनों राज्यों का संघ था, जो 'अंधक-वृष्णि-संघ' कहलाता था। उस संघ में अंधकों के मुखिया [[आहुक]] पुत्र उग्रसेन थे और वृष्णियों के शूर-पुत्र [[वसुदेव]] थे। उस संघीय गणराज्य का राष्ट्रपति उग्रसेन था। इस संघ राज्य के केंद्र मन्त्रियों में एक [[उद्धव]] भी थे। उग्रसेन की भतीजी देवकी का विवाह वसुदेव के साथ हुआ था, जिनके पुत्र भगवान कृष्ण थे। उग्रसेन के पुत्र कंस का विवाह उस काल के सर्वाधिक शक्तिशाली मगध साम्राज्य के अधिपति [[जरासंध]] की दो पुत्रियों के साथ हुआ था। वसुदेव की बहिन [[कुन्ती]] का विवाह कुरु प्रदेश के प्रतापी महाराजा [[पाण्डु]] के साथ हुआ था, जिनके पुत्र सुप्रसिद्ध [[पांडव]] थे। वसुदेव की दूसरी बहिन श्रुतश्रवा हैहयवंशी चेदिराज दमघोष को व्याही थी, जिसका पुत्र [[शिशुपाल]] था। इस प्रकार शूरसेन प्रदेश के यादवों का पारिवारिक संबंध भारतवर्ष के कई विख्यात राज्यों के अधिपतियों के साथ था। उग्रसेन का पुत्र [[कंस]] बड़ा शूरवीर और महत्त्वाकांक्षी युवक था। फिर उन्हें अपने श्वसुर जरासंध के अपार सैन्य बल का भी अभिमान था। वह गणतंत्र की अपेक्षा राजतंत्र में विश्वास रखता था। उन्होंने अपने साथियों के साथ संघ राज्य के विरुद्ध कर उपद्रव करना आरम्भ किया। अपनी वीरता और अपने श्वसुर की सहायता से उन्होंने अपने पिता उग्रसेन और बहनोई वसुदेव को शासनाधिकार से वंचित कर उन्हें कारागृह में बन्द कर दिया और आप अंधक-वृष्णि संघ का स्वेच्छाचारी राजा बन गया था। वह यादवों से घृणा करता था और अपने को यादव मानने में लज्जित होता था। उसने मदांध होकर प्रजा पर नाना प्रकार के अत्याचार किये थे। अंत में [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] द्वारा उनका अंत हुआ था।
  
हे देवर्षि ! जैसे पुरुष अग्रिकी इच्छा से अरणी काष्ठ मथता है; वैसे ही उन जाति-लोगों के कहे हुए कठोर वचनसे मेरा हृदय सदा मथता तथा जलता हुआ रहता है ॥6॥
 
  
हे नारद ! बड़े भाई बलराम सदा बल से, गद सुकुमारता से और प्रद्युम्न रूपसे मतवाले हुए है; इससे इन सहायकों के होते हुए भी मैं असहाय हुआ हूँ। ॥7॥
+
{{लेख क्रम2 |पिछला=कृष्ण का द्वारका जीवन |पिछला शीर्षक=कृष्ण का द्वारका जीवन |अगला शीर्षक=कृष्ण नारद संवाद |अगला=कृष्ण नारद संवाद }}
'''आगे पढ़ें''':-[[कृष्ण नारद संवाद]]
 
|}
 
*श्री कृष्णदत्त वाजपेयी का अनुमान है कि यादव राजा भीम सात्वत का पुत्र अंधक रहा होगा, जो सुदास के समय यादवों की मुख्य शाखा का अधिपती और [[शूरसेन]] जनपद के तत्कालीन गणराज्य का अध्यक्ष था । वह संभवत: अपने पिता भीम के समान वीर नहीं था । अंधक के वंश में कुकुर हुआ था । कुकुर की कई पीढ़ी बाद आहुक हुआ, जिसके दो पुत्र उग्रसेन और देवक हुए थे । उग्रसेन का पुत्र कंस था और देवक की पुत्री [[देवकी]] थी । उग्रसेन, देवक और कंस अपने पूर्वज अंधक और कुकुर के नाम पर अंधक वंशीय अथवा कुकुर वंशीय कहलाते थे । अंधक के भाई वृष्णि के दो पुत्र हुए, जिनके नाम देवमीढूष और युधाजित थे । देवमीढूष के पुत्र श्र्वफल्क और उनके पुत्र [[अक्रूर]] थे । वृष्णि के वंशज वाष्णि वंशीय अथवा वार्ष्णेय कहलाते थे ।
 
*अंधक और वृष्णि वंशिय द्वारा शासित शूरसेन प्रदेशांतर्गत [[मथुरा]] और [[शौरिपुर]] के दोनों राज्य 'गणराज्य' थे । उनका शासन वंश-परंपरागत न होकर समय-समय पर जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा होता था । वे प्रतिनिधि अपने-अपने गणों के मुखिया होते थे, और राजा कहलाते थे ।
 
*[[महाभारत]] युद्ध से पूर्व उन दोनों राज्यों का संघ था, जो 'अंधक-वृष्णि-संघ' कहलाता था । उस संघ में अंधकों के मुखिया आहुक-पुत्र उग्रसेन थे और वृष्णियों के शूर-पुत्र वसुदेव थे । उस संघीय गण राज्य का राष्ट्रपति उग्रसेन था । इस संघ राज्य के केंद्र मन्त्रियों में एक [[उद्धव]] भी थे । उग्रसेन की भतीजी देवकी का विवाह वसुदेव के साथ हुआ था, जिनके पुत्र भगवान कृष्ण थे । उग्रसेन के पुत्र कंस का विवाह उस काल के सर्वाधिक शक्तिशाली [[मगध]] साम्राज्य के अधिपति [[जरासंध]] की दो पुत्रियों के साथ हुआ था । वसुदेव की बहिन [[कुन्ती]] का विवाह [[कुरु]] प्रदेश के प्रतापी महाराजा [[पांडु]] के साथ हुआ था, जिनके पुत्र सुप्रसिद्ध [[पांडव]] थे । वसुदेव की दूसरी बहिन श्रुतश्रवा हैहयवंशी [[चेदि|चेदिराज]] दमघोष को व्याही थी, जिसका पुत्र [[शिशुपाल]] था । इस प्रकार शूरसेन प्रदेश के यादवों का पारिवारिक संबंध भारतवर्ष के कई विख्यात राज्यों के अधिपतियों के साथ था । उग्रसेन का पुत्र कंस बड़ा शूरवीर और महत्वाकांक्षी युवक था । फिर उन्हें अपने श्वसुर [[जरासंध]] के अपार सैन्य बल का भी अभिमान था । वह गणतंत्र की अपेक्षा राजतंत्र में विश्वास रखता था । उन्होंने अपने साथियों के साथ संघ राज्य के विरूद्ध कर उपद्रव करना आरम्भ किया । अपनी वीरता और अपने श्वसुर की सहायता से उन्होंने अपने पिता उग्रसेन और बहनोई वसुदेव को शासनाधिकार से वंचित कर उन्हें कारागृह में बन्द कर दिया और आप अंधक-वृष्णि संघ का स्वेच्छाचारी राजा बन गया था । वह यादवों से घृणा करता था और अपने को यादव मानने में लज्जित होता था । उसने मदांध होकर प्रजा पर नाना प्रकार के अत्याचार किये थे । अंत में श्री कृष्ण द्वारा उनका अंत हुआ था ।
 
  
==टीका-टिप्पणी==
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक2|पूर्णता=|शोध=}}
 +
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
{{कृष्ण}}
+
==संबंधित लेख==
[[Category:इतिहास कोश]]
+
{{कृष्ण2}}{{महाभारत}}
 +
[[Category:पौराणिक कोश]][[Category:हिन्दू भगवान अवतार]][[Category:हिन्दू देवी-देवता]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]][[Category:महाभारत]][[Category:पौराणिक चरित्र]][[Category:कृष्ण]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 +
__NOTOC__

07:30, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

कृष्ण विषय सूची
संक्षिप्त परिचय
वृष्णि संघ
Radha-Krishna-1.jpg
अन्य नाम वासुदेव, मोहन, द्वारिकाधीश, केशव, गोपाल, नंदलाल, बाँके बिहारी, कन्हैया, गिरधारी, मुरारी, मुकुंद, गोविन्द, यदुनन्दन, रणछोड़ आदि
अवतार सोलह कला युक्त पूर्णावतार (विष्णु)
वंश-गोत्र वृष्णि वंश (चंद्रवंश)
कुल यदुकुल
पिता वसुदेव
माता देवकी
पालक पिता नंदबाबा
पालक माता यशोदा
जन्म विवरण भाद्रपद, कृष्ण पक्ष, अष्टमी
समय-काल महाभारत काल
परिजन रोहिणी (विमाता), बलराम (भाई), सुभद्रा (बहन), गद (भाई)
गुरु संदीपन, आंगिरस
विवाह रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती, मित्रविंदा, भद्रा, सत्या, लक्ष्मणा, कालिंदी
संतान प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, सांब
विद्या पारंगत सोलह कला, चक्र चलाना
रचनाएँ 'गीता'
शासन-राज्य द्वारिका
संदर्भ ग्रंथ 'महाभारत', 'भागवत', 'छान्दोग्य उपनिषद'।
मृत्यु पैर में तीर लगने से।
संबंधित लेख कृष्ण जन्म घटनाक्रम, कृष्ण बाललीला, गोवर्धन लीला, कृष्ण बलराम का मथुरा आगमन, कंस वध, कृष्ण और महाभारत, कृष्ण का अंतिम समय

मधु राजा के सौ पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र एक यादवराज था। इसी के कुल में श्रीकृष्ण पैदा हुए थे और इसी कारण 'वार्ष्णेय' कहलाए। इनका वंश 'वृष्णि वंशीय यादव' कहलाता था। ये लोग द्वारका में निवास करते थे। प्रभास क्षेत्र में यादवों के गृह कलह में यह वंश भी समाप्त हो गया। 'वृष्णि गणराज्य' शूरसेन प्रदेश में स्थित था। वृष्णियों का तथा अंधकों का प्राचीन साहित्य में साथ-साथ उल्लेख है। 'पाणिनि'[1] में वृष्णियों तथा अंधको का उल्लेख है। कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र'[2] में वृष्णियों के संघ-राज्य का वर्णन है। 'महाभारत' में अंधक वृष्णियों का श्रीकृष्ण के संबंध में वर्णन है-

'यादवा: कुकुरा भोजा: सर्वे चान्धकवृष्णय:, त्वय्यासक्ता: महाबाहो लोकालोकेश्वराश्च ये।'[3]

इसी प्रसंग में श्रीकृष्ण को संघ मुख्य भी कहा गया है, जिससे सूचित होता है कि वृष्णि तथा अंधक गणजातियों के राज्य थे-

'भेदाद् विनाश: संघानां संघमुख्योऽसि केशव'।[4]

  • 'वृष्णि राजज्ञागणस्य भुभरस्य।' यह सिक्का वृष्णि-गणराज्य द्वारा प्रचलित किया गया था और इसकी तिथि प्रथम या द्वितीय शती ई. पू. है।[5]
  • अंधक एवं वृष्णि संघ सम्भवतः यदुवंशियों के राजा भीम सात्वत के पुत्रों के नाम पर बने थे। कृष्ण वृष्णि थे एवं उग्रसेन और कंस अंधक थे। मथुरा में तीर्थंकर नेमिनाथ भी अंधक कहे गये हैं। कुछ ग्रंथों में कृष्ण को अंधक भी कहा गया है। मथुरा अंधक संघ की राजधानी थी और द्वारका वृष्णियों की।
  • श्रीराम के पश्चात् जब अयोध्या की गद्दी पर कुश थे और लव युवराज थे, तब मथुरा में भीम के पुत्र अंधक राज्य करते थे। उनके बाद अंधक वंशियों का मथुरा पर अधिकार रहा, जो राजा उग्रसेन और उनके पुत्र कंस तक क़ायम रहा। भीम के दूसरे पुत्र का नाम वृष्णि था। उनके वंश में उत्पन्न शूर ने शौरीपुर[6] बसाकर अपना पृथक् राज्य स्थापित किया था। शूर के पुत्र वसुदेव हुए, जिनके पुत्र बलराम तथा कृष्ण थे।
  • वैदिक साहित्य में उत्तरी पांचाल के पौरव राजा दिवोदास और उनके वंशज सुदास की विजय-गाथाओं का उल्लेख मिलता है। सुदास ने हस्तिनापुर के पौरव राजा संवरण को उनके नौ साथी राजाओं की विशाल सेना सहित पराजित किया था। 10 राजाओं के उस भीषण संघर्ष को प्राचीन वाग्मय में "दशहराज्ञ युद्ध' कहा गया है। वीरवर सुदास से पराजित होने वाले उन नौ राजाओं में एक यादव नरेश भी था।
  • श्री कृष्णदत्त वाजपेयी का अनुमान है कि यादव राजा भीम सात्वत का पुत्र अंधक रहा होगा, जो सुदास के समय यादवों की मुख्य शाखा का अधिपती और शूरसेन जनपद के तत्कालीन गणराज्य का अध्यक्ष था। वह संभवत: अपने पिता भीम के समान वीर नहीं था। अंधक के वंश में कुकुर हुआ था। कुकुर की कई पीढ़ी बाद आहुक हुआ, जिसके दो पुत्र उग्रसेन और देवक हुए। उग्रसेन का पुत्र कंस था और देवक की पुत्री देवकी थी। उग्रसेन, देवक और कंस अपने पूर्वज अंधक और कुकुर के नाम पर अंधक वंशीय अथवा कुकुर वंशीय कहलाते थे। अंधक के भाई वृष्णि के दो पुत्र हुए, जिनके नाम देवमीढूष और युधाजित थे। देवमीढूष के पुत्र श्र्वफल्क और उनके पुत्र अक्रूर थे। वृष्णि के वंशज वाष्णि वंशीय अथवा वार्ष्णेय कहलाते थे।
  • अंधक और वृष्णि वंशिय द्वारा शासित शूरसेन प्रदेशांतर्गत मथुरा और शौरिपुर के दोनों राज्य 'गणराज्य' थे । उनका शासन वंश-परंपरागत न होकर समय-समय पर जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा होता था। वे प्रतिनिधि अपने-अपने गणों के मुखिया होते थे और राजा कहलाते थे।
  • महाभारत युद्ध से पूर्व उन दोनों राज्यों का संघ था, जो 'अंधक-वृष्णि-संघ' कहलाता था। उस संघ में अंधकों के मुखिया आहुक पुत्र उग्रसेन थे और वृष्णियों के शूर-पुत्र वसुदेव थे। उस संघीय गणराज्य का राष्ट्रपति उग्रसेन था। इस संघ राज्य के केंद्र मन्त्रियों में एक उद्धव भी थे। उग्रसेन की भतीजी देवकी का विवाह वसुदेव के साथ हुआ था, जिनके पुत्र भगवान कृष्ण थे। उग्रसेन के पुत्र कंस का विवाह उस काल के सर्वाधिक शक्तिशाली मगध साम्राज्य के अधिपति जरासंध की दो पुत्रियों के साथ हुआ था। वसुदेव की बहिन कुन्ती का विवाह कुरु प्रदेश के प्रतापी महाराजा पाण्डु के साथ हुआ था, जिनके पुत्र सुप्रसिद्ध पांडव थे। वसुदेव की दूसरी बहिन श्रुतश्रवा हैहयवंशी चेदिराज दमघोष को व्याही थी, जिसका पुत्र शिशुपाल था। इस प्रकार शूरसेन प्रदेश के यादवों का पारिवारिक संबंध भारतवर्ष के कई विख्यात राज्यों के अधिपतियों के साथ था। उग्रसेन का पुत्र कंस बड़ा शूरवीर और महत्त्वाकांक्षी युवक था। फिर उन्हें अपने श्वसुर जरासंध के अपार सैन्य बल का भी अभिमान था। वह गणतंत्र की अपेक्षा राजतंत्र में विश्वास रखता था। उन्होंने अपने साथियों के साथ संघ राज्य के विरुद्ध कर उपद्रव करना आरम्भ किया। अपनी वीरता और अपने श्वसुर की सहायता से उन्होंने अपने पिता उग्रसेन और बहनोई वसुदेव को शासनाधिकार से वंचित कर उन्हें कारागृह में बन्द कर दिया और आप अंधक-वृष्णि संघ का स्वेच्छाचारी राजा बन गया था। वह यादवों से घृणा करता था और अपने को यादव मानने में लज्जित होता था। उसने मदांध होकर प्रजा पर नाना प्रकार के अत्याचार किये थे। अंत में श्रीकृष्ण द्वारा उनका अंत हुआ था।



पीछे जाएँ
वृष्णि संघ
आगे जाएँ


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पाणिनि 4,1,114 तथा 6,2,34
  2. पृ. 12
  3. महाभारत शांतिपर्व 81,29
  4. महाभारत शांतिपर्व 81,25
  5. मजुमदार-कार्पोरेअ लाइफ़ इन ऐंशेंट इंडिया, पृ. 280
  6. वर्तमान बटेश्वर, उत्तर प्रदेश

संबंधित लेख