गीता 10:20

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गीता अध्याय-10 श्लोक-20 / Gita Chapter-10 Verse-20

प्रसंग-


अब अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार भगवान् बीसवें से उन्नीसवें श्लोक तक अपनी विभूतियों का वर्णन करते हैं-


अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थित: ।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ।।20।।



हे अर्जुन[1] ! मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा सम्पूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अन्त भी मैं ही हूँ ।।20।।

Arjuna, I am the Self, seated in the hearts of all creatures. I am the beginning, the middle and the end of all beings. (20)


गुडाकेश = हे अर्जुन; सर्वभूताशयस्थित: = सब भूतों के हृदय में स्थित; आत्मा = सबका आत्मा हूं; भूतानाम् = भूतों का; मध्यम् = मध्य; एव = ही हूं



अध्याय दस श्लोक संख्या
Verses- Chapter-10

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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