हे परंतप[1] ! मेरी दिव्य विभूतियों का अन्त नहीं है, मैंने अपनी विभूतियों का यह विस्तार तो तेरे लिये एकदेश से अर्थात् संक्षेप से कहा है ।।40।।
|
Arjuna, there is no limit to my divine manifestation. This is only a brief description by Me of the extent of my glory. (40)
|