गीता 10:33

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गीता अध्याय-10 श्लोक-33 / Gita Chapter-10 Verse-33


अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्व: समासिकस्य च ।
अहमेवाक्षय: कालो धाताहं विश्वतोमुख: ।।33।।



मैं अक्षरों में अकार हूँ और समासों में द्वन्द्वनामक समास हूँ। अक्षर काल अर्थात् काल का भी महाकाल तथा सब ओर मुखवाला, विराट् स्वरूप, सबका धारण-पोषण करने वाला भी मैं ही हूँ ।।33।।

Among the sounds represented by the various letters, I am ‘A’ ( the sound represented by the first letter of the alphabet); of the different kinds of compounds in grammar, I am the copulative compound. I am verily the endless time ( the devourer of time, god); I am the sustainer of all, having my face on all sides. (33)


अक्षराणाम् = अक्षरों में; अकार: = अकार; च = और; सामासिकस्य = समासों में; द्वन्द्व: = द्वन्द्व नामक समास; अक्षय: = अक्षय; काल: = काल अर्थात् काल का भी महाकाल; विश्वतामुख: = विराट्स्वरूप; धाता = सबका धारण पोषण् करने वाला(भी); (अस्मि) = हूं



अध्याय दस श्लोक संख्या
Verses- Chapter-10

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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