"गीता 10:38": अवतरणों में अंतर

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दमयताम् = दमन करनेवालोंका; दण्ड: = दण्ड अर्थात् दमन करने की शक्ति; जिगीषताम् = जीतनेकी इच्छावालोंकी; नीति: = नीति; गुह्रानाम् = गोपनीयोंमें अर्थात् गुप्त रखनेयोग्य भावोंमें; मौनम् = मौन; ज्ञानवताम् = ज्ञानवानों का; अहम् =मैं  
दमयताम् = दमन करने वालों का; दण्ड: = दण्ड अर्थात् दमन करने की शक्ति; जिगीषताम् = जीतने की इच्छा वालों की; नीति: = नीति; गुह्रानाम् = गोपनीयों में अर्थात् गुप्त रखने योग्य भावों में; मौनम् = मौन; ज्ञानवताम् = ज्ञानवानों का; अहम् =मैं  
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13:59, 5 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-10 श्लोक-38 / Gita Chapter-10 Verse-38


दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम् ।
मौनं चैवास्मि गुह्रानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम् ।।38।।



मैं दमन करने वालों का दण्ड अर्थात् दमन करने की शक्ति हूँ, जीतने की इच्छा वालों की नीति हूँ, गुप्त रखने योग्य भावों का रक्षक मौन हूँ और ज्ञानवानों का तत्त्व ज्ञान मैं ही हूँ ।।38।।

I am the subduing power in rulers; I am righteousness in those who seek to conquer. Of things to be kept secret, I am the custodian in the shape of reticence; and I am the wisdom of the wise . (38)


दमयताम् = दमन करने वालों का; दण्ड: = दण्ड अर्थात् दमन करने की शक्ति; जिगीषताम् = जीतने की इच्छा वालों की; नीति: = नीति; गुह्रानाम् = गोपनीयों में अर्थात् गुप्त रखने योग्य भावों में; मौनम् = मौन; ज्ञानवताम् = ज्ञानवानों का; अहम् =मैं



अध्याय दस श्लोक संख्या
Verses- Chapter-10

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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