"गीता 10:18": अवतरणों में अंतर
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हे < | हे जनार्दन<ref>मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् [[कृष्ण]] का ही सम्बोधन है।</ref> ! अपनी योग शक्ति को और विभूति को फिर भी विस्तारपूर्वक कहिये, क्योंकि आपके अमृतमय वचनों को सुनते हुए मेरी तृप्ति नहीं होती अर्थात् सुनने की उत्कण्ठा बनी ही रहती है ।।18।। | ||
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जनार्दन = हे जनार्दन; आत्मन: = अपनी; योगम् = योगशक्ति को; च = और(परमैश्वर्यरूप); विभूतिम् = | जनार्दन = हे जनार्दन; आत्मन: = अपनी; योगम् = योगशक्ति को; च = और (परमैश्वर्यरूप); विभूतिम् = विभूति को; भूय: = फिर (भी); विस्तरेण = विस्तारपूर्वक; कथय = कहिये; हि = क्योंकि (आपके); अमृतम् = अमृतमय वचनों को; श्रृण्वत: = सुनते हुए; तृप्ति: = तृप्ति; अस्ति = होती है | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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07:51, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-10 श्लोक-18 / Gita Chapter-10 Verse-18
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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