प्रसंग-
अब अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार भगवान् बीसवें से उन्नीसवें श्लोक तक अपनी विभूतियों का वर्णन करते हैं-
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थित: । अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ।।20।।
हे अर्जुन[1] ! मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा सम्पूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अन्त भी मैं ही हूँ ।।20।।
Arjuna, I am the Self, seated in the hearts of all creatures. I am the beginning, the middle and the end of all beings. (20)
गुडाकेश = हे अर्जुन; सर्वभूताशयस्थित: = सब भूतों के हृदय में स्थित; आत्मा = सबका आत्मा हूं; भूतानाम् = भूतों का; मध्यम् = मध्य; एव = ही हूं
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