परमात्मा की प्राप्तिरूप जिस लाभ को प्राप्त होकर उससे अधिक दूसरा कुछ भी लाभ नहीं मानता और परमात्म प्राप्ति रूप जिस अवस्था में स्थित योगी बड़े भारी दु:ख से भी चलायमान नहीं होता । ।।22।।
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And having obtained which he does not reckon any other gain as greater than that, and established in which he is not shaken by the heaviest of sorrows. (22)
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