जो पुरुष एकीभाव से स्थित होकर सम्पूर्ण भूतों में आत्मरूप से स्थित मुझ सच्चिदानन्दघन वासुदेव[1] को भजता है, वह योगी सब प्रकार से बरतता हुआ भी मुझ में ही बरतता है ।।31।।
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The yogi who knows that I and the Supersoul within all creatures are one worships me and remains always in me in all circumstances. (31)
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