गीता 6:31

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गीता अध्याय-6 श्लोक-31 / Gita Chapter-6 Verse-31

प्रसंग-


इस प्रकार भक्तियोग द्वारा भगवान् को प्राप्त हुए पुरुष के महत्त्व का प्रतिपादन करके अब सांख्ययोग द्वारा परमात्मा को प्राप्त हुए पुरुष के समदर्शन के महत्त्व का प्रतिपादन करते हैं-


सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थित: ।
सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते ।।31।।



जो पुरुष एकीभाव से स्थित होकर सम्पूर्ण भूतों में आत्मरूप से स्थित मुझ सच्चिदानन्दघन वासुदेव[1] को भजता है, वह योगी सब प्रकार से बरतता हुआ भी मुझ में ही बरतता है ।।31।।

The yogi who knows that I and the Supersoul within all creatures are one worships me and remains always in me in all circumstances. (31)


य: = जो पुरुष; एकत्वम् = एकीभाव में; आस्थित: = स्थित हुआ; सर्वभूतस्थितम् = संपूर्ण भूतों में आत्मरूप से स्थित; माम् = मुझ सच्चिदानन्द धन वासुदेव को; भजति = भजता है; स: = वह; सर्वथा = सब प्रकार से; वर्तमान: = बर्तता हुआ; अपि =भी; मयि = मेरे में ही; वर्तते = बर्तता है।



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मधुसूदन, केशव, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।

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