"गीता 6:31": अवतरणों में अंतर
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इस प्रकार भक्तियोग द्वारा भगवान् को प्राप्त हुए पुरुष के महत्त्व का प्रतिपादन करके अब सांख्ययोग द्वारा परमात्मा को प्राप्त हुए पुरुष के समदर्शन | इस प्रकार भक्तियोग द्वारा भगवान् को प्राप्त हुए पुरुष के महत्त्व का प्रतिपादन करके अब सांख्ययोग द्वारा परमात्मा को प्राप्त हुए पुरुष के समदर्शन के महत्त्व का प्रतिपादन करते हैं- | ||
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जो पुरुष एकीभाव से स्थित होकर सम्पूर्ण भूतों में आत्मरूप से स्थित मुझ सच्चिदानन्दघन < | जो पुरुष एकीभाव से स्थित होकर सम्पूर्ण भूतों में आत्मरूप से स्थित मुझ सच्चिदानन्दघन वासुदेव<ref>मधुसूदन, केशव, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।</ref> को भजता है, वह योगी सब प्रकार से बरतता हुआ भी मुझ में ही बरतता है ।।31।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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06:30, 5 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-6 श्लोक-31 / Gita Chapter-6 Verse-31
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
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