"गीता 6:34": अवतरणों में अंतर
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मनोनिग्रह के सम्बन्ध में < | मनोनिग्रह के सम्बन्ध में [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> की उक्ति को स्वीकार करते हुए भगवान् मन को वश में करने के उपाय बतलाते हैं – | ||
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क्योंकि हे < | क्योंकि हे [[श्रीकृष्ण]]<ref>'गीता' कृष्ण द्वारा [[अर्जुन]] को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे [[भारत]] में किसी न किसी रूप में की जाती है।</ref> ! यह मन बड़ा चंचल, प्रमथन स्वभाव वाला, बड़ा दृढ़ और बलवान है। इसलिये उसको वश में करना मैं [[वायु देव|वायु]] के रोकने की भाँति अत्यन्त दुष्कर मानता हूँ ।।34।। | ||
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06:36, 5 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-6 श्लोक-34 / Gita Chapter-6 Verse-34
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
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