"गीता 6:43": अवतरणों में अंतर
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वहाँ उस पहले शरीर में संग्रह किये हुए बुद्धि संयोग को अर्थात् समबुद्धि रूप योग के संस्कारों को अनायास ही प्राप्त हो जाता है और हे < | वहाँ उस पहले शरीर में संग्रह किये हुए बुद्धि संयोग को अर्थात् समबुद्धि रूप योग के संस्कारों को अनायास ही प्राप्त हो जाता है और हे कुरुनन्दन<ref>पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, कुरुनन्दन, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी [[अर्जुन]] के सम्बोधन है।</ref> ! उसके प्रभाव से वह फिर परमात्मा की प्राप्ति रूप सिद्धि के लिये पहले से भी बढ़कर प्रयत्न करता है ।।43।। | ||
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06:53, 5 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-6 श्लोक-43 / Gita Chapter-6 Verse-43
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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