इस अध्याय में प्रधान रूप से भगवान् की विभूतियों का ही वर्णन है, इसलिये इस अध्याय का नाम 'विभूति योग' रखा गया है ।
प्रसंग- सातवें अध्याय से लेकर नवें अध्याय तक विज्ञान सहित ज्ञान को जो वर्णन किया गया उसके बहुत गंभीर हो जाने के कारण अब पुन: उसी विषय को दूसरे प्रकार से भली-भाँति समझाने के लिये दसवें अध्याय का आरम्भ किया जाता है । यहाँ पहले श्लोक में भगवान् पूर्वोक्त विषय का ही पुन: वर्णन करने की प्रतिज्ञा करते हैं-
हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।" style="color:green">महाबाहो</balloon> ! फिर भी मेरे परम रहस्य और प्रभावयुक्त वचन को सुन, जिसे मैं तुझ अतिशय प्रेम रखने वाले के लिये हित की इच्छा से कहूँगा ।।1।।
Shri Bhagavan said-
Arjuna, hear once again my supreme word, which I shall speak to you who are so loving, out of solicitude for your welfare. (1)
महाबाहो = हे महाबाहो; भूय: = फिर; परमम् = परम(रहस्य और प्रभावयुक्त); वच: = वचन; श्रृणु = श्रवण कर; यत् = जो(कि); अहम् = मैं; प्रीयमाणाय = अतिशय प्रेम रखनेवाले के लिये; हितकाम्यया = हितकी इच्छासे; वक्ष्यामि = कहूंगा;