गीता 10:25

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गीता अध्याय-10 श्लोक-25 / Gita Chapter-10 Verse-25


महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् ।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालय ।।25।।



मैं महर्षियों में <balloon link="भृगु" title="महर्षि भृगु ब्रह्मा जी के नौ मानस पुत्रों में अन्यतम हैं। ये एक प्रजापति भी हैं और सप्तर्षियों में इनकी गणना है। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">भृगु</balloon> और शब्दों में एक अक्षर अर्थात् ओंकार हूँ । सब प्रकार के यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहने वालों में <balloon link="हिमालय" title="भारतवर्ष का सबसे ऊंचा पर्वत जो उत्तर में देश की लगभग 2500 कि0मी0 लंबी सीमा बनाता है । ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤"> हिमालय</balloon> पहाड़ हूँ ।।25।।

Among the great seers, I am Bhragu; among words, I am the sacred syllable OM. Among offerings, I am the offering of japa (muttering of sacred formulas); and among the immovabels, the Himalaya. (25)


महर्षीणाम् = महर्षियों में; भृगु: = भृगु(और); गिराम् = वचनों में; एकम् = एक; अक्षरम् = अक्षर अर्थात् ओंकार; यज्ञानाम् = सब प्रकार के यज्ञों में; जपयज्ञ: = जपयज्ञ(और); स्थावराणाम् = स्थिर रहनेवालों में; हिमालय: = हिमालय पहाड़



अध्याय दस श्लोक संख्या
Verses- Chapter-10

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
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