गीता 10:11

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गीता अध्याय-10 श्लोक-11 / Gita Chapter-10 Verse-11


तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तम: ।
नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता ।।11।।



हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! उनके ऊपर अनुग्रह करने के लिये उनके अन्त:करण में स्थित हुआ मैं स्वयं ही उनके अज्ञान जनित अन्धकार को प्रकाशमय तत्त्वज्ञान रूप दीपक के द्वारा नष्ट कर देता हूँ ।।11।।

In order to shower my grace on them I, dwelling in their heart, dispel the darkness born of ignorance by the shining light of wisdom. (11)


तेषाम् = उनके(ऊपर); अनुकम्पार्थम् = अनुग्रह करने के लिये; एव = ही; अहम् = मैं स्वयं; आत्मभावस्थ: = (उनके) अन्त: करण में एकीभाव से स्थित हुआ; अज्ञानजम् = अज्ञानसे उत्पत्र हुए; तम: = अन्धकार को; भाखता = प्रकाशमय; ज्ञानदीपेन = तत्त्वज्ञानरूप दीपकद्वारा; नाशयामि = नष्ट करता हूं



अध्याय दस श्लोक संख्या
Verses- Chapter-10

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)