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सम्पूर्ण योगियों में भी जो श्रद्धावान् योगी मुझ में लगे हुए अन्तरात्मा से मुझ को निरन्तर भजता है, वह योगी मुझे परम श्रेष्ठ मान्य है ।।47।।  
सम्पूर्ण योगियों में भी जो श्रद्धावान योगी मुझ में लगे हुए अन्तरात्मा से मुझ को निरन्तर भजता है, वह योगी मुझे परम श्रेष्ठ मान्य है ।।47।।  


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==संबंधित लेख==
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06:08, 5 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-6 श्लोक-47 / Gita Chapter-6 Verse-47

योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना ।।47।।
श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मत: ।



सम्पूर्ण योगियों में भी जो श्रद्धावान योगी मुझ में लगे हुए अन्तरात्मा से मुझ को निरन्तर भजता है, वह योगी मुझे परम श्रेष्ठ मान्य है ।।47।।

Of all yogis, again, he who devoutly worship me with his mind focused on me is considered by me to be the best yogi..(47)


सर्वेषाम् = संपूर्ण ; योगिनाम् = योगियों में ; अपि = भी ; य: = जो ; श्रद्धावान् = श्रद्धावान् योगी ; मद्रतेन = मेरे में लगे हुए ; अन्तरात्मना = अन्तरात्मा से ; माम् = मेरे को ; भजते = निरन्तर भजता है ; स: = वह योगी ; मे = मुझे ; युक्ततम: = परमश्रेष्ठ ; मत: = मान्य है ;



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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