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15:12, 21 मार्च 2010 का अवतरण

गीता अध्याय-6 श्लोक-41 / Gita Chapter-6 Verse-41

प्रसंग-


साधारण योगभ्रष्ट पुरुषों की गति बतलाकर अब आसक्तिरहित उच्च श्रेणी के योगभ्रष्ट पुरुषों की विशेष गति का वर्णन करते हैं-


प्राप्य पुण्यकृतां लोका-
नुषित्वा शाश्वती: समा: ।
शुचीनां श्रीमतां गेहे
योगभ्रष्टोऽभिजायते ।।41।।



योगभ्रष्ट पुरुष पुण्यवानों के लोकों को अर्थात् स्वर्गादि उत्तम लोकों को प्राप्त होकर, उनमें बहुत बर्षों तक निवास करके फिर शुद्ध आचरण वाले श्रीमान् पुरुषों के घर में जन्म लेता है ।।41।।

He who has fallen from yoga, obtains the higher worlds (heaven etc.) to which men of meritorious deeds alone are entitled, and having resided there for countless years, takes birth in the house of pious and wealthy men. (41)


योगभ्रष्ट: = योगभ्रष्ट पुरुष ; पुण्यकृताम् = पुण्य वानों के ; लोकान् = लोकों को अर्थात् स्वर्गादिक उत्तम लाकों को ; प्राप्य = प्राप्त होकर (उनमें) ; शाश्र्वती: = बहुत ; समा: = बर्षों तक ; उषित्वा = वास करके ; शुचीनाम् = शुद्ध आचरण वाले ; श्रीमताम् = श्रीमान् पुरुषों के ; गेहे = घर में ; अभिजायते = जन्म लेता है ;



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)