"गीता 6:5": अवतरणों में अंतर
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यह बात कही गयी कि मनुष्य आप ही अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु | यह बात कही गयी कि मनुष्य आप ही अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु है। अब उसी को स्पष्ट करने के लिये बतलाते हैं कि किन लक्षणों से युक्त मनुष्य आप ही अपना मित्र है और किन लक्षणों से युक्त आप ही अपना शत्रु है- | ||
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अपने द्वारा अपना संसार समुद्र से उद्धार करे और अपने को अधोगति में न डाले, क्योंकि यह मनुष्य आप ही तो अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु है ।।5।। | अपने द्वारा अपना संसार [[समुद्र]] से उद्धार करे और अपने को अधोगति में न डाले, क्योंकि यह मनुष्य आप ही तो अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु है ।।5।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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05:50, 5 जनवरी 2013 का अवतरण
गीता अध्याय-6 श्लोक-5 / Gita Chapter-6 Verse-5
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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