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15:11, 21 मार्च 2010 का अवतरण

गीता अध्याय-6 श्लोक-33 / Gita Chapter-6 Verse-33

प्रसंग-


समत्वयोग में मन की चंचलता को बाधक बतलाकर अब <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> मन के निग्रह को अत्यन्त कठिन बतलाते हैं-


योऽयं योगस्त्वया प्रोक्त:
साम्येन मधुसूदन ।
एतस्याहं न पश्यामि
चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम् ।।33।।



अर्जुन बोले-


हे <balloon title="मधुसूदन, केशव, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।" style="color:green">मधुसूदन</balloon> ! जो यह योग आपने समभाव से कहा है, मन के चंचल होने से मैं इसकी नित्य स्थिति को नहीं देखता हूँ ।।33।।

Arjuna said:


Krishna, owing to restlessness of mind I do not perceive the stability of this yoga in the form of equability, which you have just spoken of. (33)


मधुसूदन = हे मधुसूदन; य: = जो; अयम् = यह; योग: =ध्यान योग; त्वया =आपने; साम्येन = समत्वभाव से; प्रोक्त: =कहा है; एतय =इसकी; अहम् = मैं(मनके); चज्जलत्वात् = चज्जल होने से; स्थिराम् = बहुत काल तक ठहरने वाली; स्थितिम् = स्थिति को; न = नहीं; पश्यामि = देखता हूं।



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)