गीता 6:33

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:32, 5 जनवरी 2013 का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

गीता अध्याय-6 श्लोक-33 / Gita Chapter-6 Verse-33

प्रसंग-


समत्वयोग में मन की चंचलता को बाधक बतलाकर अब अर्जुन[1] मन के निग्रह को अत्यन्त कठिन बतलाते हैं-


योऽयं योगस्त्वया प्रोक्त:
साम्येन मधुसूदन ।
एतस्याहं न पश्यामि
चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम् ।।33।।



अर्जुन बोले-


हे मधुसूदन[2] ! जो यह योग आपने समभाव से कहा है, मन के चंचल होने से मैं इसकी नित्य स्थिति को नहीं देखता हूँ ।।33।।

Arjuna said:


Krishna, owing to restlessness of mind I do not perceive the stability of this yoga in the form of equability, which you have just spoken of. (33)


मधुसूदन = हे मधुसूदन; य: = जो; अयम् = यह; योग: =ध्यान योग; त्वया =आपने; साम्येन = समत्वभाव से; प्रोक्त: =कहा है; एतय =इसकी; अहम् = मैं(मनके); चज्जलत्वात् = चज्जल होने से; स्थिराम् = बहुत काल तक ठहरने वाली; स्थितिम् = स्थिति को; न = नहीं; पश्यामि = देखता हूं।



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  2. मधुसूदन, केशव, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।

संबंधित लेख