श्रीभगवान् बोले-
हे महाबाहो[1] ! नि:सन्देह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है; परंतु हे कुन्ती[2] पुत्र अर्जुन[3] ! यह अभ्यास और वैराग्य से वश में होता है ।।35।।
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Shri Bhagavan said:
The mind is restless no doubt; and difficult to curb, Arjuna; but it can be brought under control by repeated practice (of meditation) and by the exercise of dispassion, O son of Kunti.(35)
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