जो पुरुष एकीभाव से स्थित होकर सम्पूर्ण भूतों में आत्मरूप से स्थित मुझ सच्चिदानन्दघन <balloon title="मधुसूदन, केशव, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।" style="color:green">वासुदेव</balloon> को भजता है, वह योगी सब प्रकार से बरतता हुआ भी मुझ में ही बरतता है ।।31।।
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The yogi who knows that I and the Supersoul within all creatures are one worships me and remains always in me in all circumstances. (31)
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