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| class="headbg1" style="border:1px solid #FFDA6A;padding:10px;" valign="top" | <div class="headbg2"><span style="color: rgb(153, 51, 0); padding-left:10px;">'''विशेष आलेख'''</span></div>
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<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[कृष्ण]]'''</div>
<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[रबीन्द्रनाथ ठाकुर]]'''</div>
<div id="rollnone"> [[चित्र:Krishn-title.jpg|right|150px|कृष्ण|link=कृष्ण]] </div>
<div id="rollnone"> [[चित्र:Rabindranath-Tagore.jpg|right|150px|रबीन्द्रनाथ ठाकुर|link=रबीन्द्रनाथ ठाकुर]] </div>
*सनातन धर्म के अनुसार भगवान [[विष्णु]] सर्वपापहारी पवित्र और समस्त मनुष्यों को भोग तथा मोक्ष प्रदान करने वाले प्रमुख देवता हैं। कृष्ण [[हिन्दू धर्म]] में विष्णु के अवतार माने जाते हैं।
*रबीन्द्रनाथ ठाकुर एक बांग्ला कवि, कहानीकार, गीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार थे। जिन्हें [[1913]] में साहित्य के लिए [[नोबेल पुरस्कार]] प्रदान किया गया।
*[[छांदोग्य उपनिषद]] (3,17,6), जिसमें [[देवकी]] पुत्र कृष्ण का उल्लेख है और उन्हें घोर [[आंगिरस]] का शिष्य कहा है। परवर्ती साहित्य में श्रीकृष्ण को देव या [[विष्णु]] रूप में प्रदर्शित करने का भाव मिलता है।<balloon title="(दे0 तैत्तिरीय आरण्यक, 10, 1, 6; पाणिनि-अष्टाध्यायी, 4, 3, 98 आदि)" style=color:blue>*</balloon>
*रबीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म [[7 मई]], [[1861]] कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) में '''देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी''' के पुत्र के रूप में एक संपन्न बांग्ला परिवार में हुआ था।
*[[महाभारत]] तथा [[हरिवंश पुराण|हरिवंश]], [[विष्णु पुराण|विष्णु]], [[ब्रह्म पुराण|ब्रह्म]], [[वायु पुराण|वायु]], [[भागवत पुराण|भागवत]], [[पद्म पुराण|पद्म]], देवी भागवत [[अग्नि पुराण|अग्नि]] तथा [[ब्रह्मावर्त|ब्रह्मवर्त]] [[पुराण|पुराणों]] में उन्हें प्राय: भगवान के रूप में ही दिखाया गया है।
*उनकी स्कूल की पढ़ाई प्रतिष्ठित सेंट ज़ेवियर स्कूल में हुई। टैगोर ने बैरिस्टर बनने की चाहत में [[1878]] में [[इंग्लैंड]] के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया।
*कृष्ण की स्तुति लगभग सारे [[भारत]] में किसी न किसी रूप में की जाती है। वे लोग जिन्हें हम साधारण रूप में नास्तिक या धर्म निरपेक्ष की श्रेणी में रखते हैं निश्चित रूप से [[गीता|भगवत गीता]] से प्रभावित हैं।
*'''गल्पगुच्छ की तीन जिल्दों में उनकी सारी चौरासी कहानियाँ''' संगृहीत हैं, जिनमें से केवल दस प्रतिनिधि कहानियाँ चुनना टेढ़ी खीर है।  
*यह मत भी भ्रामक है कि [[ब्रज]] के कृष्ण, [[द्वारका]] के कृष्ण तथा महाभारत के कृष्ण एक न होकर अलग-अलग व्यक्ति थे।<balloon title="(श्रीकृष्ण की ऐतिहासिकता तथा तत्संबंधी अन्य समस्याओं के लिए देखिए- राय चौधरी-अर्ली हिस्ट्री आफ वैष्णव सेक्ट, पृ0 39, 52; आर0जी0 भंडारकार-ग्रंथमाला, जिल्द 2, पृ0 58-291; विंटरनीज-हिस्ट्री आफ इंडियन लिटरेचर, जिल्द 1, पृ0 456; मैकडॉनल तथा कीथ-वैदिक इंडेक्स, जि0 1, पृ0 184; ग्रियर्सन-एनसाइक्लोपीडिया आफ रिलीजंस (`भक्ति' पर निबंध); भगवानदास-कृष्ण; तदपत्रिकर-दि कृष्ण प्रायलम; पार्जीटर-ऎश्यंट इंडियन हिस्टारिकल ट्रेडीशन आदि।)" style=color:blue>*</balloon> '''[[कृष्ण|.... और पढ़ें]]'''
*वे अपनी कहानियाँ सबुज पत्र (हरे पत्ते) में छपाते थे। आज भी पाठकों को उनकी कहानियों में 'हरे पत्ते' और 'हरे गाछ' मिल सकते हैं।
*[[राष्‍ट्रगान]] (जन गण मन) के रचयिता टैगोर को [[बंगाल]] के ग्राम्यांचल से प्रेम था और इनमें भी पद्मा नदी उन्हें सबसे अधिक प्रिय थी।
*वास्तव में टैगोर की कविताओं का अनुवाद लगभग असंभव है और बांग्ला समाज के सभी वर्गों में आज तक जनप्रिय उनके 2,000 से अधिक गीतों, जो 'रबींद्र संगीत' के नाम से जाने जाते हैं, पर भी यह लागू होता है। '''[[रबीन्द्रनाथ ठाकुर|.... और पढ़ें]]'''
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12:37, 4 दिसम्बर 2010 का अवतरण

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विशेष आलेख

रबीन्द्रनाथ ठाकुर
रबीन्द्रनाथ ठाकुर
  • रबीन्द्रनाथ ठाकुर एक बांग्ला कवि, कहानीकार, गीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार थे। जिन्हें 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
  • रबीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म 7 मई, 1861 कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के पुत्र के रूप में एक संपन्न बांग्ला परिवार में हुआ था।
  • उनकी स्कूल की पढ़ाई प्रतिष्ठित सेंट ज़ेवियर स्कूल में हुई। टैगोर ने बैरिस्टर बनने की चाहत में 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया।
  • गल्पगुच्छ की तीन जिल्दों में उनकी सारी चौरासी कहानियाँ संगृहीत हैं, जिनमें से केवल दस प्रतिनिधि कहानियाँ चुनना टेढ़ी खीर है।
  • वे अपनी कहानियाँ सबुज पत्र (हरे पत्ते) में छपाते थे। आज भी पाठकों को उनकी कहानियों में 'हरे पत्ते' और 'हरे गाछ' मिल सकते हैं।
  • राष्‍ट्रगान (जन गण मन) के रचयिता टैगोर को बंगाल के ग्राम्यांचल से प्रेम था और इनमें भी पद्मा नदी उन्हें सबसे अधिक प्रिय थी।
  • वास्तव में टैगोर की कविताओं का अनुवाद लगभग असंभव है और बांग्ला समाज के सभी वर्गों में आज तक जनप्रिय उनके 2,000 से अधिक गीतों, जो 'रबींद्र संगीत' के नाम से जाने जाते हैं, पर भी यह लागू होता है। .... और पढ़ें
चयनित लेख
पुराण
पुराण
  • पुराणों की रचना वैदिक काल के काफ़ी बाद की है, ये स्मृति विभाग में रखे जाते हैं। पुराणों को मनुष्य के भूत, भविष्य, वर्तमान का दर्पण भी कहा जा सकता है।
  • पुराणों में हिन्दू देवी-देवताओं का और पौराणिक मिथकों का बहुत अच्छा वर्णन है। इनकी भाषा सरल और कथा कहानी की तरह है।
  • पुराण वस्तुतः वेदों का विस्तार हैं। वेद बहुत ही जटिल तथा शुष्क भाषा-शैली में लिखे गए हैं। वेदव्यास जी ने पुराणों की रचना और पुनर्रचना की।
  • पुराण शब्द ‘पुरा’ एवं ‘अण’ शब्दों की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ -‘पुराना’ अथवा ‘प्राचीन’ होता है। ‘पुरा’ शब्द का अर्थ है - अनागत एवं अतीत और ‘अण’ शब्द का अर्थ होता है- कहना या बतलाना।
  • संसार की रचना करते समय ब्रह्मा जी ने एक ही पुराण की रचना की थी। जिसमें एक अरब श्लोक थे। यह पुराण बहुत ही विशाल और कठिन था। .... और पढ़ें
कुछ चुने हुए लेख
धर्म श्रेणी वृक्ष
चयनित चित्र

सूरदास, सूर कुटी, आगरा
सूरदास, सूर कुटी, आगरा

सूरदास, सूर कुटी, आगरा

संबंधित लेख

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