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<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[रबीन्द्रनाथ ठाकुर]]'''</div>
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*वास्तव में टैगोर की कविताओं का अनुवाद लगभग असंभव है और बांग्ला समाज के सभी वर्गों में आज तक जनप्रिय उनके 2,000 से अधिक गीतों, जो 'रबींद्र संगीत' के नाम से जाने जाते हैं, पर भी यह लागू होता है। '''[[रबीन्द्रनाथ ठाकुर|.... और पढ़ें]]'''
*वास्तव में टैगोर की कविताओं का अनुवाद लगभग असंभव है और बांग्ला समाज के सभी वर्गों में आज तक जनप्रिय उनके 2,000 से अधिक गीतों, जो 'रबींद्र संगीत' के नाम से जाने जाते हैं, पर भी यह लागू होता है। '''[[रबीन्द्रनाथ ठाकुर|.... और पढ़ें]]'''
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| class="bgsahitya3" style="border:1px solid #FFDA6A; padding:10px;" valign="top" | <div style="background:#f9e0a4; border:thin solid #f7c95d"><span style="color: rgb(153, 51, 0); padding-left:8px;">'''चयनित लेख'''</span></div>
<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[रसखान]]'''</div>
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<div id="rollnone"> [[चित्र:Raskhan-1.jpg|right|150px|रसखान की समाधि, मथुरा|link=रसखान]] </div>
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10:39, 16 दिसम्बर 2010 का अवतरण

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विशेष आलेख

रबीन्द्रनाथ ठाकुर
रबीन्द्रनाथ ठाकुर
  • रबीन्द्रनाथ ठाकुर एक बांग्ला कवि, कहानीकार, गीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार थे। जिन्हें 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
  • रबीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म 7 मई, 1861 कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के पुत्र के रूप में एक संपन्न बांग्ला परिवार में हुआ था।
  • उनकी स्कूल की पढ़ाई प्रतिष्ठित सेंट ज़ेवियर स्कूल में हुई। टैगोर ने बैरिस्टर बनने की चाहत में 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया।
  • गल्पगुच्छ की तीन जिल्दों में उनकी सारी चौरासी कहानियाँ संगृहीत हैं, जिनमें से केवल दस प्रतिनिधि कहानियाँ चुनना टेढ़ी खीर है।
  • वे अपनी कहानियाँ सबुज पत्र (हरे पत्ते) में छपाते थे। आज भी पाठकों को उनकी कहानियों में 'हरे पत्ते' और 'हरे गाछ' मिल सकते हैं।
  • राष्‍ट्रगान (जन गण मन) के रचयिता टैगोर को बंगाल के ग्राम्यांचल से प्रेम था और इनमें भी पद्मा नदी उन्हें सबसे अधिक प्रिय थी।
  • वास्तव में टैगोर की कविताओं का अनुवाद लगभग असंभव है और बांग्ला समाज के सभी वर्गों में आज तक जनप्रिय उनके 2,000 से अधिक गीतों, जो 'रबींद्र संगीत' के नाम से जाने जाते हैं, पर भी यह लागू होता है। .... और पढ़ें
चयनित लेख
रसखान की समाधि, मथुरा
रसखान की समाधि, मथुरा
  • हिन्दी साहित्य में कृष्ण भक्त तथा रीतिकालीन कवियों में रसखान का महत्वपूर्ण स्थान है। 'रसखान' को रस की ख़ान कहा जाता है।
  • सैय्यद इब्राहीम रसखान का जन्म उपलब्ध स्रोतों के अनुसार सन 1533 से 1558 के बीच हैं। जो लगभग मुग़ल सम्राट अकबर के समकालीन हैं।
  • रसखान का जन्मस्थान 'पिहानी' कुछ लोगों के मतानुसार दिल्ली के समीप है। कुछ और लोगों के मतानुसार यह 'पिहानी' उत्तरप्रदेश के 'हरदोई ज़िले' में है।
  • रसखान पहले मुसलमान थे। बाद में वैष्णव होकर ब्रज में रहने लगे थे। इसका वर्णन 'भक्तमाल' में है।
  • रसखान के काव्य में छ: स्थायी भावों की निबंधना मिलती है- रति, निर्वेद, उत्साह, हास, वात्सल्य और भक्ति।
  • रसखान की भाषा की विशेषता उसकी स्वाभाविकता है। उन्होंने ब्रजभाषा के साथ खिलवाड़ न कर उसके मधुर, सहज एवं स्वाभाविक रूप को अपनाया।
  • रसखान की मृत्यु के बारे में कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं मिलते हैं। .... और पढ़ें
कुछ चुने हुए लेख
साहित्य श्रेणी वृक्ष
चयनित चित्र

सूरदास, सूर कुटी, आगरा
सूरदास, सूर कुटी, आगरा

सूरदास, सूर कुटी, आगरा

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