यहाँ हम भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्य से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। समस्त ग्रंथों का समूह, किसी भाषा की गद्य तथा पद्यात्मक रचनाएँ, भावों एवं विचारों की समष्टि ही 'साहित्य' कहलाता है।
हिन्दी साहित्य की जड़ें मध्ययुगीन भारत की ब्रजभाषा, अवधी, मैथिली और मारवाड़ी जैसी भाषाओं के साहित्य में पाई जाती हैं। प्राचीन युग के लेखकों और कवियों की विशेष रुचि यात्रावर्णन तथा रोचक कहानी कहने में थी।
भारतकोश पर लेखों की संख्या प्रतिदिन बढ़ती रहती है जो आप देख रहे वह "प्रारम्भ मात्र" ही है...
भारत के उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के युग का विस्तार सन् 1880 से 1936 तक है। यह कालखण्ड भारत के इतिहास में बहुत महत्त्व का है।
प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे।
प्रेमचंद का जन्म वाराणसी से लगभग चार मील दूर, लमही नाम के गाँव में 31 जुलाई, 1880 को हुआ। प्रेमचंद के पिताजी मुंशी अजायब लाल और माता आनन्दी देवी थीं।
प्रेमचंद का कुल दरिद्र कायस्थों का था, जिनके पास क़रीब छ: बीघे ज़मीन थी और जिनका परिवार बड़ा था। प्रेमचंद के पितामह, मुंशी गुरुसहाय लाल, पटवारी थे।
प्रेमचंद ने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हज़ारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की है।
अंतिम दिनों के एक वर्ष को छोड़कर, उनका पूरा समय वाराणसी और लखनऊ में गुज़रा, जहाँ उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया और 8 अक्टूबर, 1936 को जलोदर रोग से उनका देहावसान हो गया । .... और पढ़ें
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