गीता 11:13

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गीता अध्याय-11 श्लोक-13 / Gita Chapter-11 Verse-13

प्रसंग-


भगवान् के उस प्रकाशमय अद्भुत स्वरूप में अर्जुन[1] ने सारे विश्व को किस प्रकार देखा, अब यह बतलाया जाता है-


तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा ।
अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा ।।13।।



पाण्डु[2] पुत्र अर्जुन[3] ने उस समय अनेक प्रकार से विभक्त अर्थात् पृथक्-पृथक् सम्पूर्ण जगत् को देवों के देव श्रीकृष्ण[4] भगवान् के उस शरीर में एक जगह स्थित देखा ।।13।।

Concentrated at one place in the person of that supreme deity, Arjuna then beheld the whole universe with its manifold divisions. (13)


पाण्डव: = पाण्डुपुत्र अर्जुनने; तदा = उस कालमें; अनेकधा = अनेक प्रकारसे; प्रविभक्तम् = विभक्त हुए अर्थात् पृथक् पृथक् हुए; कृत्स्त्रम् = संपूर्ण; तत्र = उस; देवदेवस्य; देवों के देव श्रीकृष्ण भगवान् के; शरीरे = शरीरमें; एकस्थम् = एक जगह स्थित; अपश्यत् = देखा



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  2. पाण्डु हस्तिनापुर के राजा और धृतराष्ट्र के भाई थे। ये पांडवों के पिता थे।
  3. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  4. 'गीता' कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।

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