गीता 11:40

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गीता अध्याय-11 श्लोक-40 / Gita Chapter-11 Verse-40


नम: पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते
नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व ।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं
सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्व: ।।40।।



हे अनन्त सामर्थ्य वाले ! आपके लिये आगे से और पीछे से भी नमस्कार ! हे सर्वात्मन् ! आपके लिये सब ओर से ही नमस्कार हो। क्योंकि अनन्त पराक्रमशाली आप सब संसार को व्याप्त किये हुए हैं, इससे आप ही सर्वरूप हैं ।।40।।

O Lord of infinite prowess, my satutations to you from before and from behind. O soul of all, my obeisance to you from all sides indeed. You, who possess limitless might, pervade all; therefore, You are all. (40)


अनन्तवीर्य = हे अनन्त सामर्थ्यवाले; ते = आपके लिये; पुरस्तात् = आगेसे; अथ = और; पृष्ठत: =पीछे से भी; सर्व = हे सर्वात्मन्; ते = आपके लिये; सर्वत: =सब ओरसे; अस्तु = होवे (क्योंकि); अमितविक्रम: = अनन्त पराक्रमशाली; सर्वम् = सब संसार को; समाप्रोषि = व्याप्त किये हुए हैं; तत: = इससे; सर्व: = सर्वरूप



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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