गीता 11:24

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गीता अध्याय-11 श्लोक-24 / Gita Chapter-11 Verse-24


नभ:स्पृशं दीप्तमनेकवर्णं
व्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम् ।
दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा
धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो ।।24।।



क्योंकि हे विष्णो[1] ! आकाश को स्पर्श करने वाले, देदीप्यमान, अनेक वर्णों से युक्त तथा फैलाये हुए मुख और प्रकाशमान विशाल नेत्रों से युक्त आपको देखकर भयभीत अन्त:करण वाला मैं धीरज और शान्ति नहीं पाता हूँ ।।24।।

Lord, seeing your form reaching the heavens, effulgent, multi-coloured, having its mouth wide open and possessing large flaming eyes, I, with my inmost self frightened, have lost self-control and find no peace. (24)


हि = क्योंकि; विष्णो ; नभ:स्पृशम् = आकाश के साथ स्पर्श किये हुए; दीप्तम् = देदीप्यमान; अनेकवर्णम् = अनेक रूपों से युक्त; व्यात्ताननम् = फैलाये हुए मुख(और); दीप्तविशालनेत्रम् = प्रकाशमान विशाल नेत्रों से युक्त; त्वाम् = आपको; द्रष्टा = देखकर; प्रव्यथकतान्तरात्मा = भयभीत अन्त:करणवाला(मैं); धृतिम् = धीरज; शमम् = शान्तकिो; विन्दामि = प्राप्त होता हूं



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, विष्णो, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।

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