हे अर्जुन[1] ! मनुष्य लोक में इस प्रकार विश्व रूप वाला मैं न वेद[2] और यज्ञों के अध्ययन से, न दान से, न क्रियाओं से और न उग्र तपों से ही तेरे अतिरिक्त दूसरे के द्वारा देखा जा सकता हूँ ।।48।।
|
Arjuna, in this mortal world I cannot be seen in this form by anyone else than you, either through study of the vedas or of rituals, or a gain through gifts, actions or austere penances. (48)
|