मुझ परमेश्वर में अनन्य योग के द्वारा अव्यभिचारिणी भक्ति तथा एकान्त और शुद्ध देश में रहने का स्वभाव और विषयासक्त मनुष्यों के समुदाय में प्रेम का न होना ।।10।।
|
Unflinching devotion to me through exclusive attachment, living in secluded and holy places, and finding no enjoyment in the company of men; (10)
|