गीता 13:22

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गीता अध्याय-13 श्लोक-22 / Gita Chapter-13 Verse-22

प्रसंग-


इस प्रकार प्रकृतिस्थ पुरुष के स्वरूप का वर्णन करने के बाद अब जीवात्मा और परमात्मा की एकता करते हुए आत्मा के गुणातीत स्वरूप का वर्णन करते हैं-


उपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वर: ।
परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन्पुरुष: पर: ।।22।।



इस देह में स्थित यह आत्मा वास्तव में परमात्मा ही है। वही साक्षी होने से उपद्रष्टा और यथार्थ सम्मति देने वाला होने से अनुमन्ता, सबका धारण-पोषण करने वाला होने से भर्ता, जीवनरूप से भोक्ता, ब्रह्मा[1] आदि का भी स्वामी होने से महेश्वर और शुद्ध सच्चिदानन्दघन होने पर परमात्मा-ऐसा कहा गया है ।।22।।

The spirit dwelling in this body, is really the same as the supreme. He has been spoken of as the witness, the true guide, the sustainer of all, the experiencer(as the embodies soul), the overlord and the absolute as well.(22)


पुरुष: = पुरुष ; अस्मिन् = इस ; देहे = देह में ; स्थित: = स्थित हुआ ; अपि = भी ; पर: = पर ; एव = ही है (केवल) ; उपद्रष्टा = साक्षी होने से उपद्रष्टा ; च = और ; अनुमन्ता = यथार्थ सम्मति देने वाला होने से अनुमन्ता (एवं) ; भर्ता = सबको धारण करने वाला होने से भर्ता ; भोक्ता = जीवरूप से भोक्ता (तथा) ; महेश्र्वर: = ब्रह्मादिकोंका भी स्वामी होने से महेश्र्वर ; च = और ; परमात्मा = शुद्ध सच्चिदानन्दघन होने से परमात्मा ; इति = ऐसा ; उक्त: = कहा गया है ;



अध्याय तेरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-13

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य स्रष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं।

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