हे अर्जुन[1] ! अनादि होने से और निर्गुण होने से यह अविनाशी परमात्मा शरीर में स्थित होने पर भी वास्तव में न तो कुछ करता है और न लिप्त ही होता है ।।31।।
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Arjuna, being without beginning and without attributes, this indestructible supreme spirit, though dwelling in the body, in fact does nothing nor gets contaminated. (31)
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