प्रसंग-
तीसरे श्लोक में, जिससे जो उत्पन्न हुआ है, यह बात सुनने के लिये कहा गया था, उसका वर्णन पूर्व श्लोक के उत्तरार्ध में कुछ किया गया। अब उसी की कुछ बात इस श्लोक के पूर्वार्द्ध में कहते हुए इसके उत्तरार्ध में और इक्कीसवें श्लोक में प्रकृति में स्थित पुरुष के स्वरूप का वर्णन किया जाता है –
कार्यकरणकर्तृत्वे हेतु: प्रकृतिरूच्यते ।
पुरुष: सुखदु:खानां भोक्तृत्वे हेतुरूच्यते ।।20।।
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