इस प्रकार क्षेत्र तथा ज्ञान और जानने योग्य परमात्मा का स्वरूप संक्षेप से कहा गया। मेरा भक्त इसको तत्त्व से जानकर मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है ।।18।।
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Thus the truth of the ksetra and knowledge, as well as of the object worth knowing, god has been briefly discussed; knowing this in reality, my devotee enters into my beings. (18)
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