"गीता 13:22": अवतरणों में अंतर
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इस प्रकार प्रकृतिस्थ पुरुष के स्वरूप का वर्णन करने के बाद अब जीवात्मा और परमात्मा की एकता करते हुए आत्मा के गुणातीत स्वरूप का वर्णन करते हैं- | इस प्रकार प्रकृतिस्थ पुरुष के स्वरूप का वर्णन करने के बाद अब जीवात्मा और परमात्मा की एकता करते हुए [[आत्मा]] के गुणातीत स्वरूप का वर्णन करते हैं- | ||
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इस देह में स्थित यह आत्मा वास्तव में परमात्मा ही | इस देह में स्थित यह [[आत्मा]] वास्तव में परमात्मा ही है। वही साक्षी होने से उपद्रष्टा और यथार्थ सम्मति देने वाला होने से अनुमन्ता, सबका धारण-पोषण करने वाला होने से भर्ता, जीवनरूप से भोक्ता, [[ब्रह्मा]]<ref>सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, [[विष्णु]] एवं [[शिव]] की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य स्रष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं।</ref> आदि का भी स्वामी होने से महेश्वर और शुद्ध सच्चिदानन्दघन होने पर परमात्मा-ऐसा कहा गया है ।।22।। | ||
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The spirit dwelling in this body, is really the same as the supreme. He has been spoken of as the witness, the true guide, the sustainer of all, the experiencer(as the embodies soul), the overlord and the absolute as well.(22) | The spirit dwelling in this body, is really the same as the supreme. He has been spoken of as the witness, the true guide, the sustainer of all, the experiencer(as the embodies soul), the overlord and the absolute as well.(22) | ||
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07:28, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-13 श्लोक-22 / Gita Chapter-13 Verse-22
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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