"गीता 11:5": अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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परम श्रद्धालु और परम प्रेमी < | परम श्रद्धालु और परम प्रेमी [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> के इस प्रकार प्रार्थना करने पर तीन [[श्लोक|श्लोकों]] में भगवान् अपने 'विश्व रूप' का वर्णन करते हुए उस देखने के लिये अर्जुन को आज्ञा देते हैं- | ||
'''श्रीभगवानुवाच-''' | '''श्रीभगवानुवाच-''' | ||
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'''श्रीभगवान् बोले –''' | '''श्रीभगवान् बोले –''' | ||
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हे < | हे पार्थ<ref>पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी [[अर्जुन]] के सम्बोधन है।</ref> ! अब तू मेरे सैकड़ों–हज़ारों नाना प्रकार के और नाना वर्ण तथा नाना आकृति वाले अलौकिक रूपों को देख ।।5।। | ||
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शतश: = सैकड़ों; अथ = तथा; सहस्त्रश: = | शतश: = सैकड़ों; अथ = तथा; सहस्त्रश: = हज़ारों; नानाविधानि = नाना प्रकारके; नानावर्णाकृतीनि = नानावर्ण तथा आकृतिवाले; दिव्यानि = अलौकिकश; रूपाणि = रूपोंको; पश्य = देख | ||
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05:46, 6 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-11 श्लोक-5 / Gita Chapter-11 Verse-5
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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