"गीता 13:14": अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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ज्ञेयस्वरूप परमात्मा को सब ओर से हाथ, पैर आदि समस्त इन्द्रियों की शक्तिवाला बतलाने के बाद अब उसके स्वरूप की अलौकिकता का निरूपण करते हैं – | ज्ञेयस्वरूप परमात्मा को सब ओर से हाथ, पैर आदि समस्त [[इन्द्रियाँ|इन्द्रियों]] की शक्तिवाला बतलाने के बाद अब उसके स्वरूप की अलौकिकता का निरूपण करते हैं – | ||
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सर्वेन्द्रियगुणाभासम् = संपूर्ण इन्द्रियों के विषयों को जाननेवाला है परन्तु वास्तव में) ; सर्वेन्द्रियविवर्जितम् = सब इन्द्रियों से रहित है ; च = तथा ; असक्तम् = आसक्तिरहित (और) ; निर्गुणम् = गुणों से अतीत (हुआ) ; एव = भी (अपनी योगमाया से) ; सर्वभृत् = सबको धारणपोषण | सर्वेन्द्रियगुणाभासम् = संपूर्ण इन्द्रियों के विषयों को जाननेवाला है परन्तु वास्तव में) ; सर्वेन्द्रियविवर्जितम् = सब इन्द्रियों से रहित है ; च = तथा ; असक्तम् = आसक्तिरहित (और) ; निर्गुणम् = गुणों से अतीत (हुआ) ; एव = भी (अपनी योगमाया से) ; सर्वभृत् = सबको धारणपोषण करने वाला ; च = और ; गुणभोक्तृ = गुणों को भोगनेवाला है ; | ||
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==संबंधित लेख== | |||
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13:52, 6 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-13 श्लोक-14 / Gita Chapter-13 Verse-14
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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