"गीता 11:51": अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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इस प्रकार भगवान् < | इस प्रकार भगवान् [[श्रीकृष्ण]]<ref>'गीता' कृष्ण द्वारा [[अर्जुन]] को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे [[भारत]] में किसी न किसी रूप में की जाती है।</ref> ने अपने विश्व रूप को संवरण करके, चतुर्भुज रूप के दर्शन देने के पश्चात् जब स्वाभाविक मानुष रूप से युक्त होकर [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> को आश्वासन दिया, तब अर्जुन सावधान होकर कहने लगे – | ||
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'''अर्जुन बोले-''' | '''अर्जुन बोले-''' | ||
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हे < | हे जनार्दन<ref>मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् [[कृष्ण]] का ही सम्बोधन है।</ref> ! आपके इस अति शान्त मनुष्य रूप को देखकर अब मैं स्थिरचित्त हो गया हूँ और अपनी स्वाभाविक स्थिति को प्राप्त हो गया हूँ ।।51।। | ||
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'''Arjuna said-''' | '''Arjuna said-''' | ||
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तव = आपके; इदम् = इस; सौम्यम् = अतिशान्त; मानुषम् = मनुष्य; | तव = आपके; इदम् = इस; सौम्यम् = अतिशान्त; मानुषम् = मनुष्य; द्रष्टा= देखकर; इदानीम् = अब(मैं); सचेता: = शान्तचित्त; संवृत्त: = हुआ; प्रकृतिम् = अपने स्वभावको; गत: = प्राप्त हो गया | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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05:03, 4 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-11 श्लोक-51 / Gita Chapter-11 Verse-51
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
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