"गीता 13:27": अवतरणों में अंतर

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जो पुरुष नष्ट होते हुए सब चराचर भूतों में परमेश्वर को नाशरहित और समभाव से स्थित देखता है वही यथार्थ देखता है ।।27।।  
जो पुरुष नष्ट होते हुए सब चराचर भूतों में परमेश्वर को नाशरहित और समभाव से स्थित देखता है वही यथार्थ देखता है ।।27।।  


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09:48, 6 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-13 श्लोक-27 / Gita Chapter-13 Verse-27

समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम् ।
विनश्यत्स्वविनश्यन्तं य: पश्यति स पश्यति ।।27।।



जो पुरुष नष्ट होते हुए सब चराचर भूतों में परमेश्वर को नाशरहित और समभाव से स्थित देखता है वही यथार्थ देखता है ।।27।।

He alone truly sees, who sees the supreme lord as imperishable and abiding equally in all perishable beings, both animate and inanimate. (27)


य: = जो पुरुष ; विनश्यत्सु = नष्ट होते हुए ; सर्वेषु = सब ; भूतेषु = चराचर भूतों में ; अविनश्यन्तम् = नाशरहित ; परमेश्र्वरम् = परमेश्र्वर को ; समम् = समभाव से तिष्ठान्तम् = स्थित ; पश्यति = देखता है ; स: = वही ; पश्यति = देखता है ;



अध्याय तेरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-13

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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