"गीता 11:32": अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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इस प्रकार < | इस प्रकार [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> के पूछने पर भगवान् अपने उग्ररूप धारण करने का कारण बतलाते हुए प्रश्नानुसार उत्तर देते हैं – | ||
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'''श्रीभगवान् बोले-''' | '''श्रीभगवान् बोले-''' | ||
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मैं लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ महाकाल | मैं लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ महाकाल हूँ। इस समय इन लोकों को नष्ट करने के प्रवृत्त हुआ हूँ। इसलिये जो प्रतिपक्षियों की सेना में स्थित योद्धा लोग हैं वे सब तेरे बिना भी नहीं रहेंगे अर्थात् तेरे युद्ध न करने पर भी इन सबका नाश हो जायेगा ।।32।। | ||
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'''Shri Bhagavan said-''' | '''Shri Bhagavan said-''' | ||
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लोकक्षयकृत् = लोकों का नाश | लोकक्षयकृत् = लोकों का नाश करने वाला; प्रवृद्ध: = बढ़ा हुआ ; अस्मि = हूं; इह = इस समय (इन); लोकान् = लोकों को; समाहर्तुम = नष्ट करने के लिये; प्रवृत्त: = प्रवृत्त हुआ हूं(इसलिये); प्रत्यनीकेषु = प्रतिपक्षियोंकी सेना में; अवस्थिरता = स्थित हुए; योधा: = योधालोग हैं; सर्वे = सब; त्वाम् = तेरे; अपि = भी; भविष्यन्ति = रहेंगे | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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13:52, 6 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-11 श्लोक-32 / Gita Chapter-11 Verse-32
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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