"गीता 11:8": अवतरणों में अंतर
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इस प्रकार तीनों | इस प्रकार तीनों [[श्लोक|श्लोकों]] में बार-बार अपना अद्भुत रूप देखने के लिये आज्ञा देने पर भी जब [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> भगवान् के रूप को नहीं देख सके, तब उसके न देख सकने के कारण को जानने वाले अन्तर्यामी भगवान् अर्जुन को दिव्य दृष्टि देने की इच्छा करके कहने लगे – | ||
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तु = परन्तु; माम् = मेरे को; स्वचक्षुषा = अपने प्राकृत नेत्रोंद्वारा; द्रष्टुम् = देखने को; एव = नि:सन्देह; न शक्यसे = | तु = परन्तु; माम् = मेरे को; स्वचक्षुषा = अपने प्राकृत नेत्रोंद्वारा; द्रष्टुम् = देखने को; एव = नि:सन्देह; न शक्यसे = समर्थनहीं है; (अतJ = इसीसे(मैं); ते = तेरे लिये; दिव्यम् = दिव्य अर्थात् अलौकिक; ददामि = देताहूं; (तेन) = उससे (तूं); मे = मेरे; ऐश्वरम् = प्रभावको(और); योगम् = योगशक्तको; पश्य = देख | ||
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05:55, 6 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-11 श्लोक-8 / Gita Chapter-11 Verse-8
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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