"गीता 11:37": अवतरणों में अंतर
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पूर्व श्लोक में जो 'स्थाने' पद का प्रयोग करके सिद्ध समुदायों का नमस्कार आदि करना उचित बतलाया गया था, अब चार श्लोकों में भगवान् के प्रभाव का वर्णन करके उसी बात को सिद्ध करते हुए < | पूर्व [[श्लोक]] में जो 'स्थाने' पद का प्रयोग करके सिद्ध समुदायों का नमस्कार आदि करना उचित बतलाया गया था, अब चार श्लोकों में भगवान् के प्रभाव का वर्णन करके उसी बात को सिद्ध करते हुए [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> के बार-बार नमस्कार करने का भाव दिखलाते हैं- | ||
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हे महात्मन् ! < | हे महात्मन् ! [[ब्रह्मा]]<ref>सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, [[विष्णु]] एवं [[शिव]] की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं।</ref> के भी आदि कर्ता और सबसे बड़े आपके लिये ये कैसे नमस्कार न करे; क्योंकि हे अनन्त ! हे देवेश ! हे जगन्निवास<ref>मधुसूदन, केशव, देवेश, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जगन्निवास, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् [[कृष्ण]] का ही सम्बोधन है।</ref> ! जो सत्, असत् और उनसे परे अक्षर अर्थात् सच्चिदानन्दघन ब्रह्म है, वह आप ही हैं ।।37।। | ||
शिव की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं। | |||
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महात्मन् = हे महात्मन् ; अपि = भी; च = और; गरीयसे; सबसे बड़े; ते = आपके लिये(वे); कस्मात् = कैसे; न नमेरन् = नमस्कार नहीं करें(क्योंकि); अनन्त = हे अनन्त; देवेश = हे देवेश; यत् = जो; तत्परम् = उनसे परे; अक्षरम् = अक्षर अर्थात् | महात्मन् = हे महात्मन् ; अपि = भी; च = और; गरीयसे; सबसे बड़े; ते = आपके लिये(वे); कस्मात् = कैसे; न नमेरन् = नमस्कार नहीं करें(क्योंकि); अनन्त = हे अनन्त; देवेश = हे देवेश; यत् = जो; तत्परम् = उनसे परे; अक्षरम् = अक्षर अर्थात् सच्चिदानन्दघन ब्रह्रा है। | ||
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==संबंधित लेख== | |||
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07:36, 6 जनवरी 2013 का अवतरण
गीता अध्याय-11 श्लोक-37 / Gita Chapter-11 Verse-37
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
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