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इस प्रकार नित्य विज्ञान नन्दघन आत्म तत्त्व को सर्वत्र समभाव से देखने का महत्व और फल बतलाकर अब अगले श्लोक में उस अकर्ता देखने वाले की महिमा कहते हैं-
इस प्रकार नित्य विज्ञान नन्दघन आत्म तत्त्व को सर्वत्र समभाव से देखने का महत्त्व और फल बतलाकर अब अगले श्लोक में उस अकर्ता देखने वाले की महिमा कहते हैं-
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10:26, 13 मार्च 2011 का अवतरण

गीता अध्याय-13 श्लोक-29 / Gita Chapter-13 Verse-29

प्रसंग-


इस प्रकार नित्य विज्ञान नन्दघन आत्म तत्त्व को सर्वत्र समभाव से देखने का महत्त्व और फल बतलाकर अब अगले श्लोक में उस अकर्ता देखने वाले की महिमा कहते हैं-


प्रकृत्यैव च कर्माणि क्रियमाणानि सर्वश: ।
य: पश्यति तथात्मानमकर्तारं स पश्यति ।।29।।



और जो पुरुष सम्पूर्ण कर्मों को सब प्रकार से प्रकृति के द्वारा ही किये जाते हुए देखता है और आत्मा को अकर्ता देखता है, वही यथार्थ देखता है ।।29।।

And he alone really sees, who sees all actions being performed in every way by porakrti alone, and the self as the non-doer. (29)


च = और ; य: = जो पुरुष ; कर्माणि = संपूर्ण कर्मों को ; सर्वश: = सब प्रकार से ; पश्यति = देखता है ; तथा = तथा ; आत्मानम् = आत्मा को ; अकर्तारम् = अकर्ता ; प्रकृत्या = प्रकृति से ; एव = ही ; क्रियामाणानि = किये हुए ; पश्यति = देखता है ; स: = वहीं पश्यति = देखता है ;



अध्याय तेरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-13

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)