"गीता 11:55": अवतरणों में अंतर
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य: = जो पुरुष; मत्कर्मकृत् = केवल मेरे ही लिये (सब कुछ मेरा समझताहुआ) यज्ञ, दान और तप आदि संपूर्ण कर्तव्यकर्मों को करनेवाले है(और); मत्परम: = मेरे परायण है अर्थात् मेरे को परम आश्रय और परम गति मानकर मेरी प्राप्ति के लिये तत्पर है (तथा); मभ्दक्त = मेरा भक्त है अर्थात् मेरे नाम गुण प्रभाव और रहस्य के श्रवण कीर्तन मनन ध्यान और पठनपाठनका प्रेमसहित निष्कामभावसे निरन्तर अभ्यास | य: = जो पुरुष; मत्कर्मकृत् = केवल मेरे ही लिये (सब कुछ मेरा समझताहुआ) यज्ञ, दान और तप आदि संपूर्ण कर्तव्यकर्मों को करनेवाले है(और); मत्परम: = मेरे परायण है अर्थात् मेरे को परम आश्रय और परम गति मानकर मेरी प्राप्ति के लिये तत्पर है (तथा); मभ्दक्त = मेरा भक्त है अर्थात् मेरे नाम गुण प्रभाव और रहस्य के श्रवण कीर्तन मनन ध्यान और पठनपाठनका प्रेमसहित निष्कामभावसे निरन्तर अभ्यास करने वाला है(और); सगउवर्जित= आसक्तिरहित है अर्थात् स्त्री पुत्र और धनादि संपूर्ण सांसारिक पदार्थों में स्नेहरहित है(और); सर्वभूतेषु = संपूर्ण भूतप्राणियों में; निर्वैर: = वैरभाव से रहित है (ऐसा); स: = वह(अनन्य भक्तिवाला पुरुष); माम् = मेरे को(ही); एति = प्राप्त होता है | ||
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13:52, 6 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-11 श्लोक-55 / Gita Chapter-11 Verse-55
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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