गीता 11:15

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गीता अध्याय-11 श्लोक-15 / Gita Chapter-11 Verse-15

प्रसंग-


उपर्युक्त प्रकार से हर्ष और आश्चर्य से चकित <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> अब भगवान् के विश्व रूप में दिखने वाले दृश्यों का वर्णन करते हुए उस विश्व रूप का स्तवन करते हैं-


अर्जुन उवाच
पश्चामि देवांस्तव देव देहे
सर्वांस्तथा भूतविशेषसंघान् ।
ब्रह्राणमीशं कमलासनस्थ-
मृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान् ।।15।।



अर्जुन बोले-


हे देव ! मैं आपके शरीर में सम्पूर्ण देवों को तथा अनेक भूतों के समुदायों को, कमल के आसन पर विराजित <balloon link="index.php?title=ब्रह्मा" title="सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">ब्रह्मा</balloon> को, <balloon link="index.php?title=शिव" title="पुराणों के अनुसार भगवान शिव ही समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं। उन्हीं से ब्रह्मा, विष्णु सहित समस्त सृष्टि का उद्भव होता हैं।¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">महादेव</balloon> को और सम्पूर्ण ऋषियों को तथा दिव्य सर्पों को देखता हूँ ।।15।।

Arjuna said-


Lord, I behold within your body all gods and hosts of different beings, Brahma throned on his totus-seat, Siva and all Rsis and celestial serpents. (15)


तव = आपके; देहे = शरीरमें; सर्वान् = संपूर्ण; भूतविशेषसउडान् = अनेक भूतों के समुदायोंको(और); कमलासनस्थम् = कमलके आसन पर बैठे हुए; ब्रह्राणम् = ब्रह्रा को(तथा); ईशम् = महादेव को; च = और; ऋषीन् = ऋषियोंको; च = तथा; दिव्यान् = दिव्य; उरगान् = सर्पों को; पश्यामि = देखता हूं



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)