जो पुरुष नष्ट होते हुए सब चराचर भूतों में परमेश्वर को नाशरहित और समभाव से स्थित देखता है वही यथार्थ देखता है ।।27।।
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He alone truly sees, who sees the supreme lord as imperishable and abiding equally in all perishable beings, both animate and inanimate. (27)
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