कहि मन रांम नांम संभारि। माया कै भ्रमि कहा भूलौ, जांहिगौ कर झारि।। टेक।। देख धूँ इहाँ कौन तेरौ, सगा सुत नहीं नारि। तोरि तंग सब दूरि करि हैं, दैहिंगे तन जारि।।1।। प्रान गयैं कहु कौंन तेरौ, देख सोचि बिचारि। बहुरि इहि कल काल मांही, जीति भावै हारि।।2।। यहु माया सब थोथरी, भगति दिसि प्रतिपारि। कहि रैदास सत बचन गुर के, सो जीय थैं न बिसारि।।3।।