माधवे का कहिये भ्रम ऐसा।
तुम कहियत होह न जैसा।। टेक।।
न्रिपति एक सेज सुख सूता, सुपिनैं भया भिखारी।
अछित राज बहुत दु:ख पायौ, सा गति भई हमारी।।1।।
जब हम हुते तबैं तुम्ह नांहीं, अब तुम्ह हौ मैं नांहीं।
सलिता गवन कीयौ लहरि महोदधि, जल केवल जल मांही।।2।।
रजु भुजंग रजनी प्रकासा, अस कछु मरम जनावा।
संमझि परी मोहि कनक अल्यंक्रत ज्यूं, अब कछू कहत न आवा।।3।।
करता एक भाव जगि भुगता, सब घट सब बिधि सोई।
कहै रैदास भगति एक उपजी, सहजैं होइ स होई।।4।।