साध का निंदकु कैसे तरै।
सर पर जानहु नरक ही परै।। टेक।।
जो ओहु अठिसठि तीरथ न्हावै। जे ओहु दुआदस सिला पूजावै।
जे ओहु कूप तटा देवावै। करै निंद सभ बिरथा जावै।।1।।
जे ओहु ग्रहन करै कुलखेति। अरपै नारि सीगार समेति।
सगली सिंम्रिति स्रवनी सुनै। करै निंद कवनै नही गुनै।।2।।
जो ओहु अनिक प्रसाद करावै। भूमि दान सोभा मंडपि पावै।
अपना बिगारि बिरांना साढै। करै निंद बहु जोनी हाढै।।3।।
निंदा कहा करहु संसारा। निंदक का प्ररगटि पाहारा।
निंदकु सोधि साधि बीचारिआ। कहु रविदास पापी नरकि सिधारिआ।।4।।