प्रीति सधारन आव। तेज सरूपी सकल सिरोमनि, अकल निरंजन राव।। टेक।। पीव संगि प्रेम कबहूं नहीं पायौ, कारनि कौण बिसारी। चक को ध्यान दधिसुत कौं होत है, त्यूँ तुम्ह थैं मैं न्यारी।।1।। भोर भयौ मोहिं इकटग जोवत, तलपत रजनी जाइ। पिय बिन सेज क्यूँ सुख सोऊँ, बिरह बिथा तनि माइ।।2।। दुहागनि सुहागनि कीजै, अपनैं अंग लगाई। कहै रैदास प्रभु तुम्हरै बिछोहै, येक पल जुग भरि जाइ।।3।।